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Example:
http://dailypakistan.com.pk/blog/29-Oct-2014/157752
देश में जारी धरनों पर बहस अभी कुछ सिमटी ही थी कि सिंध विधानसभा का सत्र बुलाने हो गया और पीपुल्स पार्टी की राज्य सरकार से एक बारफर 'जुदाई' विकल्प वाली संयुक्त राष्ट्रीय मूवमेंट ने सिंध के मुख्यमंत्री साईं स्थापित अली शाह को ताना दे मारा कि वे शहरी क्षेत्रों क्या रखेंगे उन्होंने तो इंटीरियर सिंध क्षेत्रों की सार्वजनिक भी अकाल के हाथों मरने के लिए रख छोड़ा है. यह बयान साईं दिल पर भारी गुजरा और उन्होंने जोश ख्ाबत में रूठ हुई एम क्यू एम को जवाब भी दे डाला.
सिंध विधानसभा की नई नवेली इमारत में विशेष तैयार सोफे पर विराजमान सैयद कायम अली शाह का कहना था कि सीमापार के क्षेत्र में होने वाली हाल मौतें 'अकाल' के कारण नहीं बल्कि गरीबी की वजह से हुई. अब साईं क्या जानें कि 'गरीबी' क्या बला है जो बच्चों को नगलती जा रही है और साईं इस पर कुछ भी नहीं पा रहे.
खैर इसी दौरान शाह साहब का कहना था कि सीमापार में अस्पतालों में दी जाने वाली सुविधाएं किसी भी कराची के अस्पतालों से कम नहीं हैं और केवल मुट्ठी शहर अस्पताल ही कराची सिविल हसपता लिमिटेड का मुकाबला कर सकता है लेकिन साईं को शायद यह मालूम ही नहीं है कि उनकी अपनी सरकार की जारी रिपोर्ट के अनुसार ही सीमापार के क्षेत्र में अप्रैल माह के बाद होने वाली 250 से अधिक मौतों में सबसे 175 से अधिक मौतें तो उसी अस्पताल में हुई हैं जहां न तो उनके बच्चों को देखने के लिए कोई डॉक्टर उपलब्ध था और न ही कोई उन्हें भोजन प्रदान करने वाला था. मगर साईं कहते हैं कि यह बच्चे कुपोषण 'से नहीं बल्कि' गरीबी 'से ही मरे हैं. और साईं तो साईं, साईं की नौकरशाही भी साईं के बराबर है, जो दिन मुट्ठी इसी अस्पताल में महीने अक्टूबर में 23 वां बच्चा मारे हुआ तो डीसी और मुट्ठी आसिफ जमील सिविल अस्पताल पहुंचे तो उनका कहना था कि 'यह कोई बड़ी बात नहीं. तब तो शायद बाबू साहब की बात को जाने दिया गया होता मगर साईं ने भी विधानसभा में खड़े होकर उन साहब की बात पर मुहर पुष्टि लगाते की तो मालूम हुआ कि यह वास्तव कोई बड़ी बात नहीं.
इस बात के बावजूद कि थार में मौत किस कारण हुई हैं, इस क्षेत्र में हत्याएं होना वास्तव कोई बड़ी बात नहीं है, अभी पिछले साल भी तो सैकड़ों बच्चे मारे गए थे और पीपुल्स पार्टी के वारिस श्री बिलावल भुट्टो जरदारी वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मवहनजूदोड़ो में 'सिंध महोत्सव' मनाने में व्यस्त थे. फैशन शो के रंगारंग समारोह और सिंधी ाजरक और सिंधी संस्कृति 'मशहूर' में बिलावल इतना व्यस्त थे कि उन्हें हटाइये समापन 'मवहनजू दोड़ो'में मारे गए बच्चों की मौत पर एक' ट्वीट 'भी करने का मौका न मिला, और वैसे भी तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी, मौत तो अटल सत्य है और आज तक टाल ही कौन पाया है? लेकिन अब इन बच्चों की मौत का मातम खत्म भी नहीं हुआ था कि तत्कालीन राष्ट्रपति, बिलावल के पिता लिखे पीपुल्स पार्टी आत्मा रवांआसफ जरदारी नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री मियां मोहम्मद शरीफ के साथ 'थार कोल परियोजना का उद्घाटन करने पहुंच गए.माहरीन का कहना है कि इस परियोजना के पूरा होने पर थार में कोयले से इतनी बिजली पैदा हो सकेगी कि पूरे पाकिस्तान में लोडशीडिंग खत्म हो जाएगी लेकिन जब आसिफ जरदारी और नवाज शरीफ थार के कोयले से बिजली बनाने पहुंचे तो उन्हें थर लोगों से मिलने या उनके मारे बच्चों पर अफसोस करने की फुर्सत नहीं मिली क्योंकि थर बच्चों का मरना कोई बड़ी बात नहीं. वैसे गुज़रे ज़माने में एक कहानी 'सोई' क्षेत्र से भी जिम्मेदार है जिसने पूरे देश को प्राकृतिक गैस प्रदान की और कुछ साल पहले तक वहां के निवासी ही इस गैस का उपयोग करने से वंचित थे, इसलिए कहा जा सकता है कि थार की 'गरीबी' भी यो रहेगी और हर साल यह 'गरीबी जिन' अपने बच्चों के जीवन सभी करता रहेगा.
सैयद कायम अली शाह शायद थरपारकर गरीबी पर बात करते हुए यह भूल गए थे कि पीपुल्स पार्टी दशकों से सिंध प्रांत में सत्तारूढ़ है और उनकी सरकार की मौजूदगी में ही थार में कनोउं की अल्प संख्या में पानी की किल्लत भी बढ़ हो चुका है और जब सिंध सरकार ने पीड़ितों को पानी भेजा भी तो 'अधिक ालसमझयाद. सरकारी गेहूं सरकारी गोदामों में पड़ी खराब हो गई लेकिन न तो साईं को और न ही साईं प्रशासन को थरपारकर के बेबस बच्चों की हालत पर तरस आया और जब साईं ने उदारता से गेहूं वितरण की घोषणा भी तो उन्होंने कहा कि 'पूरे 150 किलो गेहूं हर परिवार को प्रदान की जाएगी लेकिन इस गेहूं की आधी कीमत जनता को ही भुगतान करना होगा और फिर यह गेहूं तीन महीनों की किस्तों में उपलब्ध होगी. स्वास्थ्य विभाग की ओर से जब पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए 'आवारा एस' (पेट की बीमारी के लिए दिया जाने वाला नमकोल) थरपाकर पहुंचाया तो यह भी अधिक ालसमझयाद था.ाोर जब भगवान खुद कर के मुख्यमंत्री कायम अली शाह थर पहुंचे भी तो नींद के मजे लेते रहे और प्रस्थान के समय एक बार फिर उन्होंने नदी दिल्ली का प्रदर्शन कर ही दिया और पूरे एक हजार रुपये के नोट थर पीड़ितों में से एक महिला के हाथ में थमा कर हातिम ताई की कब्र पर लात ही मार डाला. मगर इन सभी तथ्यों के बावजूद साईं स्थापित अली शाह ज़िद हैं कि यह मौत गरीबी ही कारण हुई हैं, वैसे शेष सिंध दुर्दशा भी सीमापार से कुछ बहुत अलग नहीं है और हर जगह गरीबी डेरे हैं.
दूसरी ओर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व में अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी को देखा जाए तो सिंध धरती से संबंधित एक नारा उन्हें शायद कुछ ज्यादा ही भा गया है, यही कारण है कि वह सुबह और शाम 'मरसों मरसों सिंध न डेसों का ोरद क्या देखने और सिंध के विभाजन को धरती मां वितरण करार देते हैं. मगर उन्हें शायद यह पता नहीं है कि सिंध धरती के अस्तित्व वहाँ अत्यंत अस्तित्व में है और महज नारे लगाने और सामंती अंदाज में अपनी 'जागीर' एक ही हाथ में रखने से सिंध हरगिज़ बाकी नहीं बचेगा बल्कि उन्हें अपने कीमती समय से थोड़ा समय निकालकर थरपारकर जाना होगा (भले दुनिया भर के मीडिया को अपने साथ क्यों नहीं ले चलें) और 'साईं' बताना होगा कि सीमापार में मरने वाले बच्चों की मौत का कारण दरअसल वहां के लोगों गरीबी नहीं बल्कि उनकी सरकार की 'गरीबी' है. वैसे भी बिलावल आजकल राजनीति में बड़ा नाम पाने के लिए कश्मीर के महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं और हरसाज्ी विरोधी भी लताड़ ही रहे हैं तो क्यों न थर पीड़ितों को गले लगाने की भी कोशिश कर ली जाए. और शायद जो कराची में मंदिर नेता न हो सका वह सीमापार की रेत पर कदम रखने से संभव हो.
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http://dailypakistan.com.pk/blog/29-Oct-2014/157752
देश में जारी धरनों पर बहस अभी कुछ सिमटी ही थी कि सिंध विधानसभा का सत्र बुलाने हो गया और पीपुल्स पार्टी की राज्य सरकार से एक बारफर 'जुदाई' विकल्प वाली संयुक्त राष्ट्रीय मूवमेंट ने सिंध के मुख्यमंत्री साईं स्थापित अली शाह को ताना दे मारा कि वे शहरी क्षेत्रों क्या रखेंगे उन्होंने तो इंटीरियर सिंध क्षेत्रों की सार्वजनिक भी अकाल के हाथों मरने के लिए रख छोड़ा है. यह बयान साईं दिल पर भारी गुजरा और उन्होंने जोश ख्ाबत में रूठ हुई एम क्यू एम को जवाब भी दे डाला.
सिंध विधानसभा की नई नवेली इमारत में विशेष तैयार सोफे पर विराजमान सैयद कायम अली शाह का कहना था कि सीमापार के क्षेत्र में होने वाली हाल मौतें 'अकाल' के कारण नहीं बल्कि गरीबी की वजह से हुई. अब साईं क्या जानें कि 'गरीबी' क्या बला है जो बच्चों को नगलती जा रही है और साईं इस पर कुछ भी नहीं पा रहे.
खैर इसी दौरान शाह साहब का कहना था कि सीमापार में अस्पतालों में दी जाने वाली सुविधाएं किसी भी कराची के अस्पतालों से कम नहीं हैं और केवल मुट्ठी शहर अस्पताल ही कराची सिविल हसपता लिमिटेड का मुकाबला कर सकता है लेकिन साईं को शायद यह मालूम ही नहीं है कि उनकी अपनी सरकार की जारी रिपोर्ट के अनुसार ही सीमापार के क्षेत्र में अप्रैल माह के बाद होने वाली 250 से अधिक मौतों में सबसे 175 से अधिक मौतें तो उसी अस्पताल में हुई हैं जहां न तो उनके बच्चों को देखने के लिए कोई डॉक्टर उपलब्ध था और न ही कोई उन्हें भोजन प्रदान करने वाला था. मगर साईं कहते हैं कि यह बच्चे कुपोषण 'से नहीं बल्कि' गरीबी 'से ही मरे हैं. और साईं तो साईं, साईं की नौकरशाही भी साईं के बराबर है, जो दिन मुट्ठी इसी अस्पताल में महीने अक्टूबर में 23 वां बच्चा मारे हुआ तो डीसी और मुट्ठी आसिफ जमील सिविल अस्पताल पहुंचे तो उनका कहना था कि 'यह कोई बड़ी बात नहीं. तब तो शायद बाबू साहब की बात को जाने दिया गया होता मगर साईं ने भी विधानसभा में खड़े होकर उन साहब की बात पर मुहर पुष्टि लगाते की तो मालूम हुआ कि यह वास्तव कोई बड़ी बात नहीं.
इस बात के बावजूद कि थार में मौत किस कारण हुई हैं, इस क्षेत्र में हत्याएं होना वास्तव कोई बड़ी बात नहीं है, अभी पिछले साल भी तो सैकड़ों बच्चे मारे गए थे और पीपुल्स पार्टी के वारिस श्री बिलावल भुट्टो जरदारी वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर मवहनजूदोड़ो में 'सिंध महोत्सव' मनाने में व्यस्त थे. फैशन शो के रंगारंग समारोह और सिंधी ाजरक और सिंधी संस्कृति 'मशहूर' में बिलावल इतना व्यस्त थे कि उन्हें हटाइये समापन 'मवहनजू दोड़ो'में मारे गए बच्चों की मौत पर एक' ट्वीट 'भी करने का मौका न मिला, और वैसे भी तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी, मौत तो अटल सत्य है और आज तक टाल ही कौन पाया है? लेकिन अब इन बच्चों की मौत का मातम खत्म भी नहीं हुआ था कि तत्कालीन राष्ट्रपति, बिलावल के पिता लिखे पीपुल्स पार्टी आत्मा रवांआसफ जरदारी नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री मियां मोहम्मद शरीफ के साथ 'थार कोल परियोजना का उद्घाटन करने पहुंच गए.माहरीन का कहना है कि इस परियोजना के पूरा होने पर थार में कोयले से इतनी बिजली पैदा हो सकेगी कि पूरे पाकिस्तान में लोडशीडिंग खत्म हो जाएगी लेकिन जब आसिफ जरदारी और नवाज शरीफ थार के कोयले से बिजली बनाने पहुंचे तो उन्हें थर लोगों से मिलने या उनके मारे बच्चों पर अफसोस करने की फुर्सत नहीं मिली क्योंकि थर बच्चों का मरना कोई बड़ी बात नहीं. वैसे गुज़रे ज़माने में एक कहानी 'सोई' क्षेत्र से भी जिम्मेदार है जिसने पूरे देश को प्राकृतिक गैस प्रदान की और कुछ साल पहले तक वहां के निवासी ही इस गैस का उपयोग करने से वंचित थे, इसलिए कहा जा सकता है कि थार की 'गरीबी' भी यो रहेगी और हर साल यह 'गरीबी जिन' अपने बच्चों के जीवन सभी करता रहेगा.
सैयद कायम अली शाह शायद थरपारकर गरीबी पर बात करते हुए यह भूल गए थे कि पीपुल्स पार्टी दशकों से सिंध प्रांत में सत्तारूढ़ है और उनकी सरकार की मौजूदगी में ही थार में कनोउं की अल्प संख्या में पानी की किल्लत भी बढ़ हो चुका है और जब सिंध सरकार ने पीड़ितों को पानी भेजा भी तो 'अधिक ालसमझयाद. सरकारी गेहूं सरकारी गोदामों में पड़ी खराब हो गई लेकिन न तो साईं को और न ही साईं प्रशासन को थरपारकर के बेबस बच्चों की हालत पर तरस आया और जब साईं ने उदारता से गेहूं वितरण की घोषणा भी तो उन्होंने कहा कि 'पूरे 150 किलो गेहूं हर परिवार को प्रदान की जाएगी लेकिन इस गेहूं की आधी कीमत जनता को ही भुगतान करना होगा और फिर यह गेहूं तीन महीनों की किस्तों में उपलब्ध होगी. स्वास्थ्य विभाग की ओर से जब पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए 'आवारा एस' (पेट की बीमारी के लिए दिया जाने वाला नमकोल) थरपाकर पहुंचाया तो यह भी अधिक ालसमझयाद था.ाोर जब भगवान खुद कर के मुख्यमंत्री कायम अली शाह थर पहुंचे भी तो नींद के मजे लेते रहे और प्रस्थान के समय एक बार फिर उन्होंने नदी दिल्ली का प्रदर्शन कर ही दिया और पूरे एक हजार रुपये के नोट थर पीड़ितों में से एक महिला के हाथ में थमा कर हातिम ताई की कब्र पर लात ही मार डाला. मगर इन सभी तथ्यों के बावजूद साईं स्थापित अली शाह ज़िद हैं कि यह मौत गरीबी ही कारण हुई हैं, वैसे शेष सिंध दुर्दशा भी सीमापार से कुछ बहुत अलग नहीं है और हर जगह गरीबी डेरे हैं.
दूसरी ओर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व में अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी को देखा जाए तो सिंध धरती से संबंधित एक नारा उन्हें शायद कुछ ज्यादा ही भा गया है, यही कारण है कि वह सुबह और शाम 'मरसों मरसों सिंध न डेसों का ोरद क्या देखने और सिंध के विभाजन को धरती मां वितरण करार देते हैं. मगर उन्हें शायद यह पता नहीं है कि सिंध धरती के अस्तित्व वहाँ अत्यंत अस्तित्व में है और महज नारे लगाने और सामंती अंदाज में अपनी 'जागीर' एक ही हाथ में रखने से सिंध हरगिज़ बाकी नहीं बचेगा बल्कि उन्हें अपने कीमती समय से थोड़ा समय निकालकर थरपारकर जाना होगा (भले दुनिया भर के मीडिया को अपने साथ क्यों नहीं ले चलें) और 'साईं' बताना होगा कि सीमापार में मरने वाले बच्चों की मौत का कारण दरअसल वहां के लोगों गरीबी नहीं बल्कि उनकी सरकार की 'गरीबी' है. वैसे भी बिलावल आजकल राजनीति में बड़ा नाम पाने के लिए कश्मीर के महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं और हरसाज्ी विरोधी भी लताड़ ही रहे हैं तो क्यों न थर पीड़ितों को गले लगाने की भी कोशिश कर ली जाए. और शायद जो कराची में मंदिर नेता न हो सका वह सीमापार की रेत पर कदम रखने से संभव हो.
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